कुंडली में कालसर्प दोष है तो नाग पंचमी के दिन ऐसे करें निवारण

यदि आपकी कुंडली में कालसर्प योग है और उसके कारण आपके कई कामों में विघ्न पड़ रहा है तो परेशान न हों। नाग पंचमी का दिन कालसर्प योग की शांति के लिए बेहद फलदायी होता है। पण्डित राजीव शर्मा के अनुसार राहू के जन्म नक्षत्र ‘भरणी’ के देवता काल हैं एवं केतु के जन्म नक्षत्र ‘अश्लेषा’ के देवता सर्प हैं। अतः राहू-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर “कालसर्प योग” कहा जाता है। राशि चक्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 144+144 = 288 कालसर्प योग घटित होते हैं। पण्डित राजीव शर्मा के अनुसार 27 जुलाई यानी नाग पंचमी के दिन कालसर्प योग की शांति कराकर विघ्नों को दूर किया जा सकता है। जानें इसके बारे में—
नागपंचमी का सिद्ध मुहुर्त
प्रातः 07:01 बजे के बाद 10:30 से अपरान्ह 03:00 बजे तक चर, लाभ, अमृत के चौघड़िये में कालसर्प शांति कराना अति उत्तम रहेगा। वर्ष के मध्य में कालसर्प योग जिस समय बने उस समय अनुष्ठान भी सर्वश्रेष्ठ रहता है।
गोचर में कालसर्प योग का समय
29 अगस्त 2017 प्रातः 05:30 बजे से 04 सितम्बर रात्रि 12: 00 बजे तक, 17 सितम्बर 2017 प्रातः 06:00 बजे से 02 अक्टूबर प्रातः 08:45 बजे तक, 14 अक्टूबर 2017 06:55 बजे से 29 अक्टूबर सांय 06:00 बजे तक, 10 नवम्बर रात्रि 12:30 बजे से 25 नवम्बर रात्रि 02:00 बजे तक, 08 दिसम्बर 2017 प्रातः 11:30 बजे से 23 दिसम्बर प्रातः 08:30 बजे तक एवं 04 जनवरी 2018 सांय 06:50 बजे से 19 जनवरी प्रातः 04:15 बजे तक उपरोक्त समय में भी कालसर्प शांति कराना उत्तम रहेगा।
कालसर्प योग यज्ञ का आरम्भ या समाप्ति पंचमी, अष्टमी, दशमी या चुतुर्दशी तिथिवार चाहें जो भी हो, भरणी, आद्र्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, उत्तराषाढ़ा, अभिजित एवं श्रवण नक्षत्र श्रेष्ठ माने जाते हैं। परन्तु जातक की राशि से ग्रह गणना का विचार करना परम आवश्यक होता है।
कालसर्प योग, पूजा/शांति विधान
प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के स्थान पर कुश का आसन स्थापित करके सर्व प्रथम हाथ में जल लेकर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर छिड़कें, फिर संकल्प लेकर कि मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा कर रहा हूं। अतः मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष से मुक्त करें। तत्पश्चात् अपने सामने चौकी पर एक कलश स्थापित कर पूजा आरम्भ करें। कलश पर एक पात्र में सर्प-सर्पनी का यंत्र एवं कालसर्प यंत्र स्थापित करें, साथ ही कलश पर तीन तांबे के सिक्के एवं तीन कौड़ियां सर्प-सर्पनी के जोड़े के साथ रखें, उस पर केसर का तिलक लगायें, अक्षत चढ़ायें, पुष्प चढ़ायें तथा काले तिल, चावल व उड़द को पकाकर शक्कर मिश्रित कर उसका भोग लगायें, फिर घी का दीपक जला कर निम्न मंत्र का उच्चारण करेंः-
ऊं नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु।
ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहा।।
राहु का मंत्र- ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
अब गणपति पूजन करें, नवग्रह पूजन करें, कलश पर रखी समस्त नाग-नागिन की प्रतिमा का पूजन करें व रूद्राक्ष माला से उपरोक्त कालसर्प शांति मंत्र अथवा राहू के मंत्र का उच्चारण एक माला जाप करें। उसके पश्चात् कलश में रखा जल शिवलिंग पर किसी मंदिर में चढ़ा दें, प्रसाद नंदी (बैल) को खिला दें, दान-दक्षिणा व नये वस्त्र ब्राह्मणों को दान करें। कालसर्प दोेष वाले जातक को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।
अग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है, जिसमें अनन्त, वासुकी, पदम, महापध, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक और शंखपाल यह प्रमुख माने गये हैं। स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण तथा कर्मपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है।
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